एम्स में इलाज कराना है तो पहले ये पढ़ लें
सेहतराग टीम
दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में इलाज कराने के लिए देश के हर हिस्से से लोग आते हैं मगर नए मरीजों के लिए बनाए गए नियमों की सही जानकारी नहीं होने के कारण अकसर लोग भटकते रहते हैं या दिल्ली में ऐसे किसी व्यक्ति की तलाश करते हैं जो एम्स में किसी जुगाड़ से उनका इलाज करवा दे। हालांकि अगर मरीजों और उनके परिजनों को अगर नियमों की सही जानकारी हो तो वो थोड़ी प्लानिंग करके पूरी सहुलियत से इलाज करवा सकते हैं। इस आलेख में हम आपको एम्स के नए नियमों की जानकारी देने जा रहे हैं।
पहले क्या था नियम
अभी हाल तक एम्स ने नए मरीजों के लिए सिर्फ ऑनलाइन अप्वाइंटमेंट की सुविधा दे रखी थी। यानी आप एम्स की वेबसाइट और फोन के जरिये निर्धारित डॉक्टर से अप्वाइंट की तारीख और समय ले सकते थे और उस दिन ओपीडी काउंटर पर पहुंचने के बाद उनका कार्ड बना दिया जाता था। प्रतिदिन देखे जाने वाले मरीजों की संख्या निर्धारित थी और मरीज दो से ढाई महीने पहले भी अप्वाइंटमेंट ले सकते थे।
ऐसे में जो भी मरीज बिना ऑनलाइन अप्वाइंटमेंट के सीधे एम्स पहुंचता था उसका ओपीडी कार्ड नहीं बनाया जाता था। इस व्यवस्था में एक बड़ी खामी ये थी कि अप्वाइंटमेंट सीधे डॉक्टर के नाम से मिलता था और अगर किसी वजह से निर्धारित तिथि को डॉक्टर छुट्टी पर या ऑपरेशन में हो तो मरीजों को भारी परेशानी हो जाती थी।
नए नियम क्या हैं
अब एम्स प्रशासन ने नियम में बदलाव कर दिया है। नए नियम के तहत प्रतिदिन देखे जाने वाले मरीजों की संख्या तो निर्धारित रहेगी मगर इसमें से आधे मरीज ऑनलाइन अप्वाइंटमेंट से देखे जाएंगे और बाकी आधे में से 30 फीसदी सीधे अस्पताल पहुंचने वाले मरीज होंगे। दूसरा बदलाव ये किया गया है कि ऑनलाइन अप्वाइंटमेंट अब किसी डॉक्टर के नाम से नहीं मिलेगा बल्कि विभाग के नाम से मिलेगा।
यानी मरीज को यदि आंख दिखलानी है तो उसे नेत्र विभाग का अप्वाइंटमेंट मिलेगा और अप्वाइंटमेंट वाले दिन अस्पताल जाकर उसे ओपीडी कार्ड लेना होगा। पूर्व निर्धारित अप्वाइंटमेंट वाले मरीजों के लिए अलग काउंटर खोल दिए गए हैं और यहां से कार्ड बनने के बाद उसी काउंटर से डॉक्टर का नाम और कमरा नंबर कार्ड पर अंकित किया जाएगा। इससे ये होगा कि उस दिन ओपीडी में मौजूद डॉक्टर के पास मरीजों को भेजा जा सकेगा और डॉक्टर के अनुपस्थित होने से मरीजों को जो परेशानी होती है उससे मरीज बच पाएंगे।
दूसरी ओर जो मरीज सीधे अस्पताल पहुंच जाया करेंगे उन्हें भी निराश लौटने की जरूरत नहीं पड़ेगी और एक निर्धारित संख्या में ऐसे मरीजों के ओपीडी कार्ड बन पाएंगे।
20 फीसदी मरीज ऐसे होंगे
शेष बचे 20 फीसदी मरीज ऐसे होंगे जिन्हें एक विभाग से दूसरे विभाग में भेजा जाता है। उदाहरण के लिए आप पेशाब की कोई शिकायत लेकर यूरोलॉजी विभाग में गए मगर पाया गया कि आपकी शिकायत दरअसल किडनी की किसी गंभीर बीमारी के कारण है तो आपको नेफ्रोलॉजी में स्थानांतरित किया जाएगा। ऐसे मरीजों के लिए 20 फीसदी सीट रखी गई है।
(दैनिक जागरण से इनपुट के साथ)
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